गुरु बिन मोक्ष नहीं हो सकता
गुरु बिन मोक्ष नहीं हो सकता
सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही जीवन में गुरु की महत्ता को स्वीकार किया गया है कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है जैसे बालक के जन्म के समय सबसे पहली गुरु उसकी माता होती है उसके बाद वह जिस भी क्षेत्र में जाता है वह किसी को अपना गुरु जरूर बनाता है क्योंकि गुरु के बिना वह कोई भी विद्या नहीं सीख पाता है चाहे वह तकनीकी कार्य हो चाहे वह किताबी ज्ञान हो हर ज्ञान में उसे गुरु की आवश्यकता पड़ती है इसी परिपेक्ष्य में इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि क्या गुरु बिन मोक्ष संभव हो सकता है जब गुरु के बिना अन्य कोई कार्य भी हम नहीं सीख पाते तो क्या व्यक्ति की मुक्ति संभव होती है जैसा कि कुछ धर्म और पंथ को मानने वाले कहते है।
guru is god |
नमस्कार दोस्तों मैं हूं अशोक कुमार और आपका मेरे ब्लॉक कबीर क्लासेस 58 में स्वागत है
गुरु की आवश्यकता क्यों
जैसा कि हम जानते और मानते भी और विभिन्न संतो ने अपनी वाणी यों के अंदर भी गुरु की महत्ता को बहुत ही सुंदर बताया है जैसा कि कबीर साहिब जी ने बहुत सारे दोहों के माध्यम से गुरु की महत्ता को स्पष्ट किया है कबीर जी अपने दोहे में कहते हैं कि
कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण।
भावार्थ कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फेरते हैं और गुरु के बिना दान देते हैं तो इन दोनों का कोई लाभ यानी कोई फल प्राप्त नहीं होता अर्थात यह दोनों ही व्यर्थ है और हमारे पवित्र सद ग्रंथ भी ऐसा ही प्रमाण देते हैं।
गुरु पद का महत्व
गुरु पद का बहुत ही महत्व है इस परिपेक्ष में ऐतिहासिक और आध्यात्मिक साक्षी मिलता है कि जब तक पार्वती ने गुरु धारण नहीं किया था तब तक उसकी मृत्यु होती थी ऐसे ही उसकी एक सो आठ बार मृत्यु हुई लेकिन एक बार नारद जी के कहने के बाद पार्वती ने भगवान शिव को अपना गुरु बनाया और उसके बाद उसकी जन्म और मृत्यु समाप्त हुई यानी व तब तक मृत्यु को प्राप्त नहीं होगी जब तक शिवजी की उम्र है।
ऐसे ही एक बार सुखदेव ऋषि बिना गुरु धारण किए ही विष्णु लोक के स्वर्ग में गए परंतु वहां पर उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया और विष्णु जी ने उन्हें कहा कि यहां तू क्यों आया और उन्हें समझाया कि यहां पर बिना गुरु के किसी भी व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिया जा सकता इस कारण सुखदेव ऋषि को राजा जनक को गुरु बनाना पड़ा था।
ऐसे ही श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से दीक्षा ली और श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनी जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त किया और श्री दुर्वासा जी को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया था। इससे सिद्ध होता है कि गुरु के बिना ज्ञान एवं मोक्ष दोनों ही संभव नहीं है क्योंकि जब तक ज्ञान नहीं होगा तो मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी।
कबीर जी अपनी वाणी में इसका प्रमाण भी देते हैं
कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु किन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।।
इसमें कबीर साहिब जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम और श्री कृष्ण जी से तो बड़ा और समृद्ध किसी को नहीं मानते हो उन्हें तीन लोक के स्वामी बनाते हो तो उन्होंने भी गुरु बना करके ही भक्ति की और अपने मानव जीवन को सार्थक किया इन बातों से सहज ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरु के बिना भक्ति करता है तो क्या वह सही है तो इससे तो यही सिद्ध होता है कि उसकी भक्ति व्यर्थ है अर्थात गुरु बनाना अति आवश्यक है।
sadhguru |
गुरु कैसा होना चाहिए
ऊपर हमने गुरु की महत्ता और उसकी आवश्यकता के बारे में पड़ा अब हम यह विचार करेंगे अगर गुरु करना जरूरी है तो गुरु कैसा होना चाहिए क्योंकि वर्तमान समय में कई प्रकार के आडंबरी गुरु भी होते हैं। गुरु पूर्ण होना चाहिए।
पूर्ण गुरु की क्या पहचान होती है?
पवित्र गीता जी में पूर्ण गुरु की पहचान
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
पवित्र कबीर सागर में पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण संत तीन प्रकार के मंत्रों को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ 265 पर बोध सागर में मिलता है।
वेदों में पूर्ण गुरु की पहचान
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि पूर्ण गुरु वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को
पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा।
विभिन्न संतों की वाणी में गुरु की पहचान
श्री नानक देव जी की वाणी में पूर्ण गुरु की पहचान
जै पंडित तु पढि़या, बिना दुउ अखर दुउ नामा।
प्रणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच समावा।
गुरु नानक जी महाराज अपनी वाणी द्वारा समाझाना चाहते हैं कि पूरा सतगुरु वही है जो दो अक्षर के जाप के बारे में जानता है।
कबीर परमात्मा ने अपने शिष्य धर्मदास को बताया कि जो मेरा संत सतभक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे यह उसकी पहचान होगी।
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावे।
सतगुरु की पहचान संत गरीबदास जी की वाणी में -
”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“
पूर्ण संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा। अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।
यह सब बातें सच्चे सतगुरु रामपाल जी महाराज पर ही खरी उतरती हैं।
संत रामपाल जी महाराज वेद शास्त्रों और श्रीमद्भगवद्गीता के आधार पर सत्य ज्ञान बता रहे हैं तथा वह तीनों समय की भक्ति विधि प्रदान कर रहे हैं उनसे सद्भक्ति ग्रहण करके अपना अनमोल मानव जीवन सफल करें।
अधिक जानकारी के लिए देखें साधना टीवी रोज रात्रि 7:30 बजे से।
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