Land Revenue Systemin British India
भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां
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भारत में अंग्रेजों की भू राजस्व नीतियां
1. इजारेदारी प्रथा (Farming System)- 1772 में वारेन हेस्टिंग्स
- उद्देश्य :- अधिक भू राजस्व वसूल करना।
- परीक्षण तथा अशुद्धि का नियम (trial and error)
- पंचवर्षीय ठेके की व्यवस्था
- सालाना ठेके की व्यवस्था
- मुख्य विशेषताएं :-
१. ठेके की व्यवस्था
२. सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि का ठेका
2. स्थाई बंदोबस्त(Permanent Settlement)/जमींदारी व्यवस्था/इस्तमरारी व्यवस्था/जागीरदारी व्यवस्था/मालगुजारी व्यवस्था- 22 मार्च 1793 में लार्ड कार्नवालिस
- उद्देश्य :-
१. भारत में जमींदारों का एक सशक्त वर्ग तैयार करना जो अंग्रेजी साम्राज्य के लिए सामाजिक आधार का कार्य करें।
२. कंपनी की आय में वृद्धि करना।
- क्षेत्र:- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, यूपी के बनारस और गाजीपुर प्रखंड तथा उत्तरी कर्नाटक में।
- ब्रिटिश भारत का कुल क्षेत्रफल :- लगभग 19%
- भूमि पर अधिकार/मालिक :- भूमि अधिग्रहण सदैव के लिए जमींदार को
- राजस्व देने की जिम्मेदारी :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी जमींदार की
- विशेषताएं :-
१. भूमि का स्थायी मालिक जमीदार
२. किसानों के अधिकारों को छीनना
३. लगान सदैव के लिए निश्चित
४. सरकार का किसानों से प्रत्यक्ष संपर्क नहीं
५. भू राजस्व दर- जमींदार को- 1/11 भाग
कंपनी को - 10/11 भाग
६. सूर्यास्त सिद्धांत
७. कंपनी की आय में वृद्धि
८. जमींदारों के लिए उत्तराधिकारी व्यवस्था
लाभ:
१. जमीदारों को
२. सरकार को
३. अन्य को
हानियां:
१. किसानों को
२. उदार जमीदारों को
३. जमीदारों का समृद्ध होना
४. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष को हानि
५. कृषक आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना
६. सरकार को
3. रैयतवाड़ी व्यवस्था(Ryotwari System)
- जनक :- टॉमस मुनरो और कैप्टन रीड
- उद्देश्य :- बिचौलिया वर्ग को समाप्त करना।
- इसे पहली बार मद्रास प्रेजीडेंसी के बारामहल जिले में कैप्टन रीड द्वारा 1792 में लागू किया गया।
- 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो(1820-27) द्वारा पूर्ण रूप से लागू किया गया।
- 1825 में मुंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर माउंटस्टूअर्ट एलफिंस्टन(1819-27) के प्रयासों से लागू।
- क्षेत्र :- मुंबई व मद्रास के अधिकतर भागों में, पूर्वी बंगाल, आसाम, कुर्ग में।
- ब्रिटिश भारत का कुल क्षेत्रफल:- लगभग 51%
- 30 वर्ष बाद लगान दर की समीक्षा की व्यवस्था
- भूमि पर अधिकार/मालिक :- भूमि का मालिक किसान
- राजस्व देने की जिम्मेदारी :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी किसान की
- विशेषताएं:-
१. रैयतों/किसानों से सीधा बंदोबस्त
२. भूमि का मालिकाना हक रैयतों को
३. भू राजस्व का निर्धारण भूमि के क्षेत्रफल के आधार पर
४. लगान की दर- अस्थायी एवं परिवर्तनशील
- लाभ/गुण:
१. किसानों में आत्मविश्वास व आत्म निर्भरता की भावना उत्पन्न होना।
२. कृषक व कृषि की दशा में सुधार
३. किसानों को शोषण से राहत
४. प्राकृतिक आपदा में लगान की राशि घटाना
५. सरकार भविष्य में भूमि कर बढ़ा सकती है।
- हानियां/दोष:
१. लगान इतना अधिक था कि किसानों ने साहूकारों से कर्ज लेकर जमीनें गिरवी रख दी व न चुकाने पर उनकी जमीनें बिक गई।
२. लगान संग्राहक बड़े निर्दय व क्रूर सिद्ध हुए, उनके अमानवीय व्यवहार की गूँज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी।
३. लगान वृद्धि की भावी आशंका से किसान सदा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहने लगा।
४. भूमि के व्यक्तिगत सम्पति बन जाने से ग्राम्य जीवन के परम्परागत सामुदायिक बंधन क्षीण हो गए।
4. महालवाड़ी व्यवस्था(The Mahalwari System)- लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय
- भूमि कर:- इसमें भूमि कर की इकाई कृषक का खेत नहीं अपितु ग्राम अथवा महल होता था।
- 1819 ईस्वी में सर्वप्रथम प्रस्ताव होल्ट मैकेंजी ने दिया।
- 1822 का रेगुलेशन-7 :- इसके द्वारा होल्ट मैकेंजी के सुझाव को कानूनी रूप दिया गया, भूमि कर ⅘ भाग निश्चित किया गया।
- 1833 का रेगुलेशन-9 :- १. भू राजस्व में सरकार का हिस्सा ⅔ निश्चित किया गया।
२. इस व्यवस्था की अवधि 30 वर्ष निश्चित की गई।
३. इन सुधारों को मार्टिन बर्ड और जेम्स टॉमसन ने क्रियान्वित किया।
- मार्टिन बर्ड को उत्तर भारत में भू राजस्व व्यवस्था का जनक कहा गया।
- भूमि कर की दर:- अस्थायी एवं परिवर्तनशील
- क्षेत्र :- उत्तर-पश्चिमी प्रांत(आगरा) व अवध(UP), मध्य प्रांत, पंजाब और दक्षिण भारत के कुछ जिलों में
- ब्रिटिश भारत का कुल क्षेत्रफल:- 30%
- भूमि पर अधिकार/मालिक :- भूमि पर गाँव/महल का अधिकार
- राजस्व देने की जिम्मेदारी :- ब्रिटिश सरकार को राजस्व देने की जिम्मेदारी समस्त गाँव/गाँव के मुखिया/प्रधान/लम्बरदार की
- लाभ/गुण :-
१. भूमि पर सामूहिक स्वामित्व- भूमि पर सामूहिक स्वामित्व से परस्पर भाईचारे एवं निकटता को बढ़ावा मिलता है।
२. मध्यस्थों का अभाव- मध्यस्थों के अभाव में कृषकों का शोषण नहीं हो पाता।
३. सरकार को लाभ- लगान का अस्थायी रूप से निर्धारण होने के कारण भूमि की उर्वरता का लाभ सरकार को भी प्राप्त हो जाता है।
४. कृषक का स्वाभिमान बना रहना- व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र खेती करने से कृषक का स्वाभिमान बना रहता है।
- हानियां/दोष :-
१. लगान निर्धारण में मनमानी- लगान का निर्धारण करने में सरकारी अधिकारी मनमानी कर सकते हैं।
२. जमींदारी प्रथा के दोषों का समावेश- यह व्यवस्था लगभग जमींदारी प्रथा की तरह अमल में लायी गई, अत: इस प्रथा में जमींदारी के दोष आ जाते हैं।
३. सरकार एवं किसानों के प्रत्यक्ष संबंध बिल्कुल समाप्त।
बंगाल के गवर्नर
रोजर ड्रेक(1752-58)
रॉबर्ट क्लाइव (1758-60)
जॉन हॉलवेल(जनवरी-जुलाई 1760, कार्यवाहक)
हेनरी वेंसीटार्ट(1760-64)
जॉन स्पेंसर (1765-65, कार्यवाहक)
रॉबर्ट क्लाइव (1765-67)
हैरी वेरेल्स्ट(1767-69)
जॉन कार्टियर (1769-72)
वारेन हेस्टिंग्स (1772-74)
बंगाल के गवर्नर जनरल
वारेन हेस्टिंग्स (20 अक्टूबर 1774-85)
जॉन मैक्फर्सन(1785-86, कार्यवाहक)
अर्ल(मार्क्विस) कार्नवालिस (1786-93)
सर जॉन शोर(1793-98)
सर ए. क्लार्क(1798)
रिचर्ड वेलेजली(1798-1805)
मार्क्विस कार्नवालिस(1805)
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