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Kabir Prakat Diwas Not Jayanti

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कबीर परमात्मा का प्रकट दिवस मनाते हैं, जयंती नहीं होती।

जयंती और प्रकट दिवस में क्या अंतर है वह परमात्मा कौन है जिसका प्रकट दिवस मनाते हैं, जयंती नहीं ? ऐसा क्यों? उस परमात्मा के प्रकट दिवस मनाने के क्या प्रमाण ? इन सभी बातों के बारे में आज हम इस ब्लॉक के अंतर जानेंगे।
नमस्कार मित्रों मैं हूं, अशोक कुमार, आपका मेरे ब्लॉग "कबीर क्लासेज 58" में स्वागत हैं।
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अभी तक हम यही देखते आए हैं कि जो भी इस संसार में आता है वह मृत्यु को प्राप्त करता है इसी कारण से उसकी याद में जयंती मनाते हैं इसी प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं एवं महात्माओं की हर साल जयंती मनाई जाती हैं लेकिन आज यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे की एक परमात्मा(जो इस संसार में आता है तो कवियों की तरह आचरण करता है और साधारण वेशभूषा में जीवन व्यतीत करता है) ऐसा भी है जो अजन्मा है यानी जिस की जन्म और मृत्यु नहीं होती वह सशरीर इस लोक में आता है और सशरीर ही इस लोक से चला जाता है वह किसी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता है वह कमल के फूल पर प्रकट होता है इसी कारण हम उसका प्रकट दिवस मनाते।
वह परमात्मा कबीर साहिब हैं।

कबीर जयंती और कबीर प्रकट दिवस में अंतर

जो जन्मता है उसकी जयंती मनाई जाती है, जो अजन्मा है, स्वयंभू है, वह प्रकट होता है। कबीर साहेब, अमर पुरूष लीला करते हुए बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होते हैं।

सभी देवों का जन्म दिवस तो आखिर कबीर जी का प्रकट दिवस क्यों ?

पूर्ण परमात्मा कबीर जी के अलावा सभी देव जन्म-मृत्यु में हैं और प्रकट दिवस सिर्फ अविनाशी परमात्मा का ही मनाया जाता है क्योंकि वह जन्म नहीं लेते बल्कि हर युग में कमल के फूल पर प्रकट होते हैं।


चारों युगों में सिर्फ कबीर परमात्मा के प्रकट होने के ही प्रमाण हैं

सतयुग में सत सुकृत नाम से,
त्रेता में मुनीन्द्र नाम से, 
द्वापर में करुणामय नाम से,
और कलयुग में अपने असली नाम कबीर नाम से प्रकट होते हैं।

बाकी सभी देव मां के गर्भ से जन्म लेते हैं।
कबीर साहेब कलयुग में
सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त में अपने सत्यलोक से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।
120 वर्ष तक यहां लीला करते हुए 1518 में मगहर से सशरीर सतलोक को चले गए। इसका प्रमाण है कि उनके शरीर की जगह फूल प्राप्त हुए जिसे हिंदू और मुसलमानों ने आधी आधी बांट लिए थे। जिसकी यादगारें वर्तमान में भी मौजूद हैं।
पूर्ण परमात्मा का माँ के गर्भ से जन्म नहीं होता।
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यह भी जाने- 52 बार कबीर परमात्मा को मारने की चेष्टाएं की गई

कबीर साहेब ने अपनी वाणियों में स्पष्ट किया है, कि उनका जन्म नहीं होता।

ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।
माता पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी।
जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।


आदरणीय गरीब दास जी ने भी अपनी वाणी के माध्यम से यह बताया है कि परमात्मा कबीर जी की कोई माता नही थी अर्थात उनका जन्म माँ के गर्भ से नही हुआ।

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदीछोड़ कहाय। 
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
सिर्फ कबीर जी का ही प्रकट दिवस क्यों ?*
   ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि वह परमात्मा सतलोक से शिशु रूप धारण करके प्रकट होता है और कुंवारी गायों के दूध से उसकी परवरिश होती है ।
ऋग्वेद  मंडल नंबर 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में भी वर्णन है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी जान बूझकर बालक रूप में प्रकट होते है।

जो जन्मता है उसकी जयंती मनाई जाती है, जो अजन्मा है, स्वयंभू है, वह प्रकट होता है। कबीर साहेब, अमर पुरूष लीला करते हुए बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होते हैं। ।
इसलिए उनका प्रकट दिवस मनाया जाता हैं।

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परमात्मा कैसा है
चारों युगों में सिर्फ कबीर परमात्मा के प्रकट होने के ही प्रमाण हैं

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