52 बार कबीर परमात्मा को मारने की कुचेष्टा की गई (52 Cruelities On God Kabir)
- 52 बार कबीर परमात्मा को मारने की कुचेष्टा की गई (52 Cruelities On God Kabir)
नमस्कार मित्रों मैं हूं अशोक कुमार आपका मेरे ब्लॉग Kabir classes 58 में स्वागत करता हूं।
आज हम इस ब्लॉग में जानेंगे उस पूर्ण परमात्मा के बारे में जो सभी युगों में अपने लोक से सशरीर चलकर आते हैं और सशरीर ही वापस अपने वास्तविक लोक यानी सतलोक चल कर जाते हैं ।
वह परमात्मा जब कलयुग में 1398 ई. में इस लोक में आए थे और अपने तत्वज्ञान का प्रचार कर रहे थे उस समय उन्हें विभिन्न लोगों ने समाप्त करने की कोशिश कुशेष्टा की, उसमें प्रमुख थे तत्कालीन सुल्तान सिकंदर लोदी के धार्मिक पीर शेखतकी। लेकिन वे उन्हें समाप्त नहीं कर सके क्योंकि वह पूर्ण परमात्मा थे और सब का उपकार करने के लिए अपने लीला कर रहे थे । उस पूर्ण परमात्मा कबीर जी के बारे में आज हम इस ब्लॉग में जानेंगे कि किस प्रकार की कुशेष्टाएं उन्हें समाप्त करने के लिए की गई।
आशा करता हूं कि मेरा यह प्रयास आपको जरूर समझ में आएगा।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब को समाप्त करने की कुशेष्टाएं निम्न प्रकार की गई थी:-
🐛कबीर जी को मारने के लिए उन्हें खूनी हाथी के आगे बांध कर डाला गया।
लेकिन अविनाशी कबीर जी ने हाथी को शेर रूप दिखा दिया। जिससे हाथी भयभीत होकर भाग गया।
सबने कबीर जी की जय जयकार की।
🐛कबीर परमेश्वर को तोप के गोलों से मारने की व्यर्थ चेष्टा"
कबीर जी को मारने के लिए शेखतकी के आदेश पर पहले पत्थर मारे, फिर तीर मारे। परन्तु परमेश्वर की ओर पत्थर या तीर नहीं आया। फिर चार पहर तक तोप यंत्र से गोले चलाए गए।
लेकिन दुष्ट लोग अविनाशी कबीर जी का कुछ नहीं बिगाड़ सके।
🐛दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने जनता को शांत करने के लिए अपने हाथों से हथकड़ियाँ लगाई, पैरों में बेड़ी तथा गले में लोहे की भारी बेल डाली आदेश दिया गंगा दरिया में डुबोकर मारने का। उनको दरिया में फैंक दिया। कबीर परमेश्वर जी की हथकड़ी, बेड़ी और लोहे की बेल अपने आप टूट गयी। परमात्मा जल पर सुखासन में बैठे रहे कुछ नहीं बिगड़ा।
🐛कबीर परमात्मा जब एक बार गंगा दरिया में डुबोने से भी नहीं डूबे तो शेखतकी ने फिर आदेश दिया कि पत्थर बाँधकर पुन: गंगा के मध्य ले जाकर जल में फैंक दो। सब पत्थर बँधन मुक्त होकर जल में डूब गए, परंतु परमेश्वर कबीर जी जल के ऊपर सुखासन लगाए बैठे रहे। नीचे से गंगा जल की लहरें बह रही थी। परमेश्वर आराम से जल के ऊपर बैठे थे।
🐛कबीर साहेब को मारने के लिए शेखतकी ने तलवार से वार करवाये। लेकिन तलवार कबीर साहेब के आर पार हो जाती क्योंकि कबीर साहेब का शरीर पाँच तत्व का नहीं बना था उनका नूरी शरीर था। फिर सभी लोगों ने कबीर साहेब की जय जयकार की।
साहेब कबीर को मारण चाल्या, शेखतकी जलील।
आर पार तलवार निकल ज्या, समझा नहीं खलील।।
🐛उबलते तेल में जलाने की चेष्टा
कबीर जी को जीवित जलाने के लिए उन्हें उबलते तेल के कड़ाहे में डाला गया। लेकिन समर्थ अविनाशी परमात्मा का बाल भी बांका नहीं हुआ।
🐛"शेखतकी द्वारा कबीर साहेब को गहरे कुँए में डालना"
शेखतकी ने कबीर साहेब को बांध कर गहरे कुँए में डाल दिया, ऊपर से मिट्टी, ईंट और पत्थर से कुँए को पूरा भर दिया। फिर शेखतकी सिकन्दर राजा के पास गया वहां जाकर देखा तो कबीर परमेश्वर पहले से ही विराजमान थे।
🐛कबीर परमेश्वर को शेखतकी ने उबलते हुए तेल में बिठाया। लेकिन कबीर साहेब ऐसे बैठे थे जैसे कि तेल गर्म ही ना हो। सिकन्दर बादशाह ने तेल के परीक्षण के लिए अपनी उंगली डाली, तो उसकी उंगली जल गई। लेकिन अविनाशी कबीर परमेश्वर जी को कुछ भी नहीं हुआ।
🐛कबीर साहेब जब सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि इनके गले में जहरीला साँप डाल दो लेकिन वो साँप कबीर साहेब के गले में डालते ही सुंदर पुष्पों की माला बन गया। क्योंकि कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा थे।
🐛कबीर साहेब सिकंदर लोधी के दरबार में बैठकर सत्संग कर रहे थे तब शेखतकी ने सिपाही से कहा कि लोहे को गर्म करके पिघलाकर पानी की तरह बनाओ और कबीर साहेब पर डालो। ठीक ऐसा ही हुआ जब लोहा गर्म करके पिघलाकर कबीर साहेब पर डाला तब वह फूल बन गए जैसे की मानो फूलों की वर्षा होने लगी। तब सभी ने कबीर साहेब की जय जयकार लगाई।
🐛परमात्मा के शरीर में कीले ठोकने का व्यर्थ प्रयत्न"
कबीर साहेब को मारने के लिए एक दिन शेखतकी ने सिपाहियों को आदेश दिया की कबीर साहेब को पेड़ से बांधकर शरीर पर बड़ी बड़ी कील ठोक दो। लेकिन जब कील ठोकने चले तो सिपाहियों के हाथ पैर काम करना बंद हो गए और वो वहाँ से भाग गए और शेखतकी को फिर परमात्मा कबीर साहेब के सामने लज्जित होना पड़ा।
🐛शेखतकी पीर ने कबीर साहेब को नीचा दिखाने के लिए 3 दिन के भंडारे की कबीर साहेब के नाम से सभी सभी आश्रमों में झूठी चिठ्ठी डलवाई थी कि कबीर जी 3 दिन का भंडारा करेंगे सभी आना भोजन के बाद एक मोहर, एक दोहर भी देंगे। कबीर साहेब ने 3 दिन का मोहन भंडारा भी करा दिया था और कबीर साहेब की महिमा भी हुई।
🐛"भूखा प्यासा मारने की चेष्टा"
एक दिन शेखतकी ने कबीर साहेब को नीम के पेड़ में लोहे के तार से बांधकर भूखा प्यासा छोड़ दिया और सोचा कि कबीर साहेब मर जाएंगे। लेकिन कबीर साहेब को कुछ नहीं हुआ और वो वापिस जीवित दरबार में पहुँच गए।
पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।।
🐛"मुर्दे को जीवित करने की परीक्षा लेना"
दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी के पीर शेख तकी ने कहा कबीर जी को तब अल्लाह मानेंगे जब मेरी मरी हुई लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है। कबीर परमेश्वर जी ने अपनी समर्थ शक्ति से हजारों लोगों के सामने उस लड़की को जीवित किया और उसका नाम कमाली रखा। कबीर परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं।
🐛"कबीर साहेब को जहरीले बिच्छू द्वारा मारने का प्रयास"
शेखतकी के आदेश पर सिपाही बहुत सारे बिच्छू टोकरी में भरकर सिकंदर लोधी राजा के दरबार में गए जहाँ कबीर साहेब सत्संग कर रहे थे फिर सिपाहियों ने कबीर साहेब पर बिच्छू छोड़ना शुरू कर दिया। लेकिन सभी बिच्छू कबीर साहेब तक पहुँचने से पहले ही विलीन हो गए।
यह देखकर सभी लोग हैरान हो गए और कबीर साहेब के जयकारे लगाने लगे
🐛"खूनी हाथी से मरवाने की व्यर्थ चेष्टा"
शेखतकी के कहने पर दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर परमेश्वर को खूनी हाथी से मरवाने की आज्ञा दे दी। शेखतकी ने महावत से कहकर हाथी को एक-दो शीशी शराब की पिलाने को कहा।
हाथी मस्ती में भरकर कबीर परमेश्वर को मारने चला। कबीर जी के हाथ-पैर बाँधकर पृथ्वी पर डाल रखा था। जब हाथी परमेश्वर कबीर जी से दस कदम (50 फुट) दूर रह गया तो परमेश्वर कबीर के पास बब्बर शेर खड़ा केवल हाथी को दिखाई दिया। हाथी डर से चिल्लाकर (चिंघाड़ मारकर) भागने लगा। परमेश्वर के सब रस्से टूट गए। उनका तेजोमय विराट रूप सिकंदर लोधी को दिखा। तब बादशाह ने कांपते हुए अपने गुनाह की माफी मांगी।
🐛दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी के पीर शेखतकी ने कहा कि अगर यह कबीर अल्लाह है तो इसकी परीक्षा ली जाए कोई मुर्दा जीवित करे। तब सर्वशक्तिमान कबीर परमात्मा ने दरिया में बहते आ रहे एक लडके के शव को हजारों लोगों के सामने जीवित किया। उसका नाम कमाल रखा। कबीर परमेश्वर समर्थ भगवान हैं। पूर्ण परमात्मा ही मृत व्यक्ति को जीवित कर सकता हैं।
🐛शेखतकी ने जुल्म गुजारे, बावन करी बदमाशी,
खूनी हाथी के आगे डालै, बांध जूड अविनाशी,
हाथी डर से भाग जासी, दुनिया गुण गाती है।
शेखतकी ने अविनाशी को मारने के लिए खूनी हाथी के आगे डाला। हाथी कबीर भगवान के पास जाते ही डर कर भाग गया। तब लोगों ने कबीर साहेब की जय-जय कार की। कबीर भगवान अविनाशी है।
यह वह प्रयास थे जो उन अज्ञानी लोगों ने पूर्ण परमात्मा को समाप्त करने के लिए किए थे लेकिन उनके सारे ही प्रयास विफल हुए क्योंकि वह अविनाशी परमात्मा थे वह अजर अमर थे जो कभी विनाश को नहीं आते । लेकिन उन्होंने सबको अपने ज्ञान द्वारा प्यार से समझाया ना की किसी के साथ में हिंसा का सहारा लिया यही उनकी पहचान है और अपनी लीला 120(1518 ई.) वर्ष करते हुए सशरीर मगहर से वापस अपने निज स्थान सतलोक को गमन कर गए और सब को प्रेम और भाईचारे से रहने का संदेश दे गए।
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