google-site-verification=INyWX4YITZAOUjfNBAJ8XpugnZwFjHbMwSrLWY3v6kk कबीर परमात्मा का मगहर से सशरीर सतलोक गमन और मगहर लीलाएं(Kabir Supreme Soul's Maghar to Maghil Satlok Gaman and Maghar Leela) - KABIR CLASSES 58 -->
कबीर परमात्मा का मगहर से सशरीर सतलोक गमन और मगहर लीलाएं(Kabir Supreme Soul's Maghar to Maghil Satlok Gaman and Maghar Leela)

कबीर परमात्मा का मगहर से सशरीर सतलोक गमन और मगहर लीलाएं(Kabir Supreme Soul's Maghar to Maghil Satlok Gaman and Maghar Leela)


कबीर परमात्मा का मगहर से सशरीर सतलोक गमन और मगहर लीलाएं


नमस्कार मित्रों मैं हूं अशोक कुमार
आपका मेरे ब्लॉग कबीर क्लासेज 58 में स्वागत करता हूं।
इस ब्लॉग के अंतर्गत पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की लीलाओं के बारे में जानेंगे, जो लीलाए उन्होंने इस लोक में आकर के की जिसके अंतर्गत वह अपने प्यारी आत्माओं से मिले उन्हें अपने तत्वज्ञान से परिचित करवाया, उन्हें विभिन्न शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान किए और सत भक्ति प्रदान करके उनका उद्धार किया।

पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की लीलाओं को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से जानेंगे:-

1. कबीर साहेब द्वारा सर्वानंद को शरण में लेना
पंडित सर्वानंद ने अपनी माँ से कहा कि मैंने सभी ऋषियों को शास्त्रार्थ में हरा दिया है तो मेरा नाम सर्वाजीत रख दो लेकिन उनकी माँ ने सर्वानंद से कहा कि पहले आप कबीर साहेब को शास्त्रार्थ में हरा दो तब आपका नाम सर्वाजीत रख दिया जाएगा। जब सर्वानंद कबीर साहेब के पास शास्त्रार्थ करने पहुँचे तो कबीर साहेब ने कहा कि आप तो वेद-शास्त्रों के ज्ञाता हैं मैं आपसे शास्त्रार्थ नहीं कर सकता। तब सर्वानंद ने एक पत्र लिखा कि शास्त्रार्थ में सर्वानंद जीते और कबीर जी हार गए। उस पर कबीर साहेब जी से अंगूठा लगवा लिया। लेकिन जैसे ही सर्वानंद अपनी माँ के पास जाते तो अक्षर बदल कर कबीर जी जीते और पंडित सर्वानंद हार गए ये हो जाते। ये देखकर सर्वानंद आश्चर्य चकित हो गए और आखिर में हार मानकर सर्वानंद ने कबीर साहेब की शरण ग्रहण की।

2. सम्मन को पार करना
सम्मन बहुत गरीब था। जब कबीर परमात्मा का भक्त बना। तब परमात्मा के आशीर्वाद से दिल्ली का महान धनी व्यक्ति हो गया, परंतु मोक्ष की इच्छा नहीं बनी।
सम्मान ने अपने परमेश्वर रूप सतगुरु के लिए अपने बेटे की कुर्बानी की थी। जिस कारण अगले जन्म में नौशेरखान शहर के राजा के घर जन्मा। फिर ईराक देश में बलख नामक शहर का राजा अब्राहिम सुल्तान बना। परमात्मा ने उस आत्मा के लिए अनेकों लीलाएं की और उसका उद्धार किया।

3. दादू जी का उद्धार
सात वर्ष की आयु के दादू जी को परमात्मा कबीर जी जिंदा महात्मा के रूप में मिले व ज्ञान समझाया और सतलोक दिखाया।
इसलिए परमात्मा कबीर जी की महिमा गाते हुए दादू  जी कहते हैं :-
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार ।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार ।।

4. मीरा बाई को शरण में लेना
मीरा बाई पहले श्री कृष्ण जी की पूजा करती थी। एक दिन संत रविदास जी तथा परमात्मा कबीर जी का सत्संग सुना तो पता चला कि श्री कृष्ण जी नाशवान हैं। समर्थ अविनाशी परमात्मा अन्य है। संत रविदास जी को गुरू बनाया। फिर अंत में कबीर जी को गुरू बनाया। तब मीरा बाई जी का सत्य भक्ति बीज का बोया गया।
गरीब, मीरां बाई पद मिली, सतगुरु पीर कबीर।
देह छतां ल्यौ लीन है, पाया नहीं शरीर।।
संत गरीबदास जी को शरण में लेना

5. परमात्मा कबीर जी ने दस वर्षीय बालक गरीबदास जी को सतलोक के दर्शन करवाए, ज्ञान समझाया और अपनी शरण में लिया और सतलोक का वासी किया।
शेखतकी के अत्याचारों को माध्यम बना लाखों जीवों का उद्धार करना

6. स्वामी रामानंद जी से ज्ञान चर्चा के लिए आए गोरखनाथ जी से परमेश्वर कबीर जी ने खुद चर्चा की और गोरखनाथ जी को पराजित कर सत्य ज्ञान से परिचित करवा मोक्ष की राह दिखाई।

7. तेरह गाड़ी कागजों को लिखना
    एक बार दिल्ली के बादशाह ने कहा कि कबीर जी ढ़ाई दिन में तेरह गाड़ी कागजों को लिख दे तो मैं उनको परमात्मा मान जाऊंगा । परमात्मा ने गाड़ियों में रखे कागजों पर अपनी डण्डी घुमा दी। उसी समय सर्व कागजों में अमृतवाणी सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया। राजा को विश्वास हुआ।

7. धर्मदास को सदमार्ग दिखाना
भक्त धर्मदास जी बांधवगढ़ के धनी सेठ थे। देवी तथा
शिव-पार्वती की पूजा, तीर्थों व धामों पर जाकर स्नान करना आदि शास्त्रविरूद्ध साधना किया करता था।
धर्मदास जी जब तीर्थ यात्राओं पर निकले तो परमात्मा कबीर जी जिंदा महात्मा के वेश में उन्हें मिले और बार-बार ज्ञान की चोट की, सतलोक के दर्शन कराए और अपनी शरण में लिया।

8. ऋषि दत्तात्रे जी ने परमात्मा कबीर जी (ऋषि मुनीन्द्र रूप से) तत्वज्ञान समझा, दीक्षा ली। सतनाम तक मिला। सारनाम उस समय किसी को नहीं देना था क्योंकि सारनाम पर उस समय ऋषियों को विश्वास नहीं होना था। कलयुग के पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीतने तक सार नाम, सार ज्ञान (तत्वज्ञान) गुप्त रखना था। ये दोनों कारण मुख्य रहे। जिस कारण से सारनाम नहीं दिया गया।
गरीब, दुर्बासा और मुनिंद्रका, हुवा ज्ञान संवाद। दत्त तत्त्व में मिल गये, जा घर विद्या न बाद।।
सुपच सुदर्शन को पार करना

9. परमात्मा कबीर जी द्वापर युग में करूणामय नाम से प्रकट थे। तब सुपच सुदर्शन बाल्मीकि को उपदेश देकर पार किया। गोरख नाथ को भी समझाया।
गरीब, कल्प करी करुणामई, सुपच दिया उपदेश। सतगुरु गोरख नाथ गति, काल कर्म भये नेस।।
कबीर परमात्मा की अद्भुत लीलाएं

10. बली राजा की यज्ञ में बावना बने। फिर विशाल रूप किया। गज तथा मगरमच्छ युद्ध कर रहे थे तो उनकी भी गति भक्ति अनुसार की। द्रोपदी का चीर भी परमात्मा कबीर जी ने बढ़ाया। द्रोपदी श्री कृष्ण की भक्त थी। इसलिए बड़ाई कृष्ण को मिली।

11. एक बार द्रौपदी ने अंधे महात्मा को अपनी साड़ी के कपड़े में से टुकड़ा दिया था क्योंकि अंधे महात्मा की कोपीन पानी में बह गई थी। साधु ने आशीर्वाद अनंत चीर पाने का आशीर्वाद दिया। कबीर परमात्मा ने चीरहरण में द्रौपदी का चीर बढ़ाकर लाज बचाई।
गरीब, पीतांबर कूं पारि करि, द्रौपदी दिन्हीं लीर।
अंधे कू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।
नीरू को धन प्राप्ति

12. कबीर परमेश्वर जब नीरू नीमा को बालक रूप में मिले तब उससे पूर्व दोनों जने (पति-पत्नी) मिलकर कपड़ा बुनते थे। 25 दिन बच्चे की चिन्ता में कपड़ा बुनने का कोई कार्य न कर सके। जिस कारण से कुछ कर्ज नीरू को हो गया। फिर कबीर जी ने कहा कि आप चिंतित न हों, आपको प्रतिदिन एक सोने की मोहर (दस ग्राम स्वर्ण) पालने के बिछौने के नीचे मिलेगी। आप अपना कर्ज उतार कर अपना तथा गऊ का खर्च निकाल कर शेष बचे धन को धर्म कर्म में लगाना। उस दिन के पश्चात् दस ग्राम स्वर्ण प्रतिदिन नीरू के घर परमेश्वर कबीर जी की कृपा से मिलने लगा।

13. कसाई का उद्धार
गरीब, राम नाम सदने पिया, बकरे के उपदेस। अजामेल से ऊधरे, भगति बंदगी पेस।।
एक सदन नाम का कसाई था। संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला कर देता हूँ। ऐसे ही सदन कसाई को शरण में लेकर सतभक्ति कराकर उद्धार किया था।

14. एक बार परमात्मा कबीर साहेब जी जब 5 वर्ष की आयु के थे उस समय उन्होंने 104 वर्ष की आयु के रामानंद जी के साथ ज्ञान चर्चा की, उनके साथ कई लीलाएं की, अपना परिचय करवाया तथा सतलोक दिखाया तब रामानंद जी को दृढ़ विश्वास हुआ कि कबीर साहिब ही सृष्टि रचनहार पूर्ण ब्रह्म हैं।

15. पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ने विट्ठल रूप धारण कर नामदेव की रोटी खाई तथा उसकी झोपड़ी बनाई।
बिठल होकर रोटी खाई, नामदेव की कला बढ़ाई।
पुंण्डरपुर नामा प्रवान, देवल फेर छिवा दई छान।।
कोढ़ की असहनीय पीड़ा से दुखी सैकड़ों व्यक्तियों को परमात्मा ने रोगमुक्त किया और अपनी शरण में लिया ।

कबीर परमात्मा ही वास्तविक मुक्तिदाता है उनकी सद्भक्ति ग्रहण करने से भयंकर से भयंकर और असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती है इसके साथ साथ में आध्यात्मिक मार्ग भी खुल जाता है यानी जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर के व्यक्ति सतलोक को प्राप्त करता है जहां जाने के बाद फिर से जन्म मरण नहीं होता जहां किसी प्रकार की व्याधि नहीं है और ना ही किसी प्रकार का कष्ट है वर्तमान समय में ऐसे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब को प्राप्त करने की तथा उनके द्वारा प्रदान लाभ प्राप्त करने की भक्ति विधि संत रामपाल जी महाराज दे रहे हैं सभी उनसे यह सब भक्ति ग्रहण करके अपना मानव जीवन धन्य करें।

मेरे ब्लॉग को विजिट करने के लिए आपका धन्यवाद👏👏👍👍

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