google-site-verification=INyWX4YITZAOUjfNBAJ8XpugnZwFjHbMwSrLWY3v6kk मारवाड़ का अदम्य योद्धा और प्रताप राव चंद्रसेन || हिस्टोरी ऑफ मारवाड़ |... - KABIR CLASSES 58 -->
मारवाड़ का अदम्य योद्धा और प्रताप राव चंद्रसेन ||  हिस्टोरी ऑफ मारवाड़ |...

मारवाड़ का अदम्य योद्धा और प्रताप राव चंद्रसेन || हिस्टोरी ऑफ मारवाड़ |...


नमस्कार दोस्तों मैं हूं, प्रो. अशोक कुमार और आज हम डिस्कस करेंगे मारवाड़ के प्रताप, प्रताप के अग्रगामी, भूला बिसरा शासक, विश्मृत शासक आदि उपनामों से जाने जाते मारवाड़ के शासक राव चंद्रसेन राठौड़ के बारे में।
राव चन्द्रसेन जोधपुर के प्रसिद्ध शासक राव
मालदेव (1532-62 ई.) के कनिष्ठ पुत्र थे।
राव मालदेव और शेर शाह सुरी
 राव मालदेव के समय
दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया
था। दोनों पक्षों के बीच 1544 ई. में लड़े गए गिरी-सुमेल (पाली)
युद्ध में छल-कपट के सहारे शेरशाह जीत हासिल करने में
सफल रहा किन्तु राव मालदेव के पराक्रमी सेनापतियों जैता और
कूंपा ने युद्ध के दौरान उसे ऐसी कड़ी टक्कर दी कि इतिहासकार
फरिश्ता के अनुसार शेरशाह अपने घोड़े से नीचे उतर कर
सफलता के लिए अल्लाह से दुआ मांगने लगा। शेरशाह के भय
का पता उसकी इस स्वीकारोक्ति से चलता है, जिसमें उसने युद्ध
के बाद कहा था कि ‘मैं एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दूस्तान
की बादशाहत खो बैठता।’
आरंभिक जीवन और शासक बनना
जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार चन्द्रसेन का जन्म
1541 ई. में हुआ। राव मालदेव अपने ज्येष्ठ पुत्र राम से अप्रसन्न
था, जबकि उससे छोटे पुत्र उदयसिंह को पटरानी स्वरूपदे
(चन्द्रसेन की माँ) ने राज्याधिकार से वंचित करवा दिया। इस
कारण मालदेव की मृत्यु के बाद उसकी इच्छानुसार 31 दिसम्बर
1562 ई. को चन्द्रसेन जोधपुर की गद्दी पर बैठा। मालदेव के काल
में उसे बीसलपुर और सिवाना की जागीर मिली हुई थी।
भाइयों के आंतरिक विद्रोह का दमन
शासक बनने के कुछ ही समय
बाद चन्द्रसेन ने आवेश में आकर अपने एक चाकर की हत्या कर
दी। इससे जैतमाल और उससे मेल रखने वाले कुछ अन्य सरदार
अप्रसन्न हो गए। नाराज सरदारों ने चन्द्रसेन को दंडित करने के
लिए उसके विरोधी भाइयों राम, उदयसिंह और रायमल के साथ
गठबंधन कर उन्हें आक्रमण के लिए आमन्त्रित किया। राम ने
सोजत और रायमल ने दूनाड़ा प्रान्त में उपद्रव शुरू कर दिया
तथा उदयसिंह ने गांगाणी और बावड़ी पर अधिकार कर लिया।
सूचना मिलते ही चन्द्रसेन ने इन उपद्रवों को शांत करने के लिए
अपनी सेना भेजी जिससे राम और रायमल तो अपनी-अपनी
जागीरों में लौट गए किन्तु उदयसिंह ने लोहावट नामक स्थान पर संघर्ष किया। इस युद्ध में उदय सिंह घायल हुआ और चंद्रसेन विजयी रहा।1563 ई. में राव चंद्रसेन और उदय सिंह की सेनाओं के बीच नाडोल नामक स्थान पर पुणे संघर्ष हुआ किंतु विजय की आशा न देखकर उदय सिंह बादशाह अकबर के पास चला गया।
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